6/20/12

भ्रष्ट मंत्रियों की लिस्ट में प्रणब का भी नाम : किरण बेदी

कानपुर: प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद पर चुनाव लड़ने पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए टीम अन्ना की प्रमुख सदस्य किरण बेदी ने कहा कि हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि हमने जिन 14 मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की बात कही है, उन सभी मंत्रियों की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए। इन 14 मंत्रियों की सूची में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी शामिल हैं।


ब्रिक्स देशों ने कर्ज संकट के दलदल में फंसे यूरोपीय देशों को उबारने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को 75 अरब डॉलर का बेलआउट फंड देने की जो घोषणा की है, उसमें भारत द्वारा 10 अरब डॉलर का योगदान किए जाने को बेदी ने गलत बताते हुए कहा कि जब हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा रही है, तो हमें दूसरे देशो को संकट से निपटने के लिए कर्ज सहायता देना ठीक नहीं है।


बेदी 'इंडिया अंगेस्ट करप्शन' के तहत निकाली जा रही अन्ना संदेश यात्रा के अवसर पर आयोजित एक सभा को संबोधित करने आई थीं। कार्यक्रम के बाद पत्रकारों के प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर टीम अन्ना के रुख के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि टीम अन्ना ने गहन जांच-पड़ताल के बाद जिन 14 मंत्रियों की सूची बनाई है और जिनके भ्रष्टाचार में शामिल होने की बात कही है, उनमें प्रणब मुखर्जी भी शामिल हैं।


इससे पहले बेदी ने अपने भाषण में कहा कि हमारा देश बुजदिलों और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने वाला बनता जा रहा है और हम देशवासी दिन पर दिन गरीब होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा देश और हम गरीबी और परेशानी में इसलिए हैं, क्योंकि हमारे नेता और नौकरशाह बेईमान हैं और देशवासी तब तक गरीबी का दंश झेलते रहेंगे, जब तक आंखों पर पट्टी बांधकर बिना जांचे-परखे अपने उम्मीदवारों को वोट देते रहेंगे और उन्हें संसद में चुनकर भेजते रहेंगे।


बेदी ने कहा कि एक पुलिस का छोटा सा अधिकारी भ्रष्टाचार करता है, तो फौरन उसके खिलाफ जांच बैठा दी जाती है, लेकिन जब हमारे देश के नेता भ्रष्टाचार करते हैं और हम जांच की मांग करते हैं, तो उनके खिलाफ जांच तक नहीं होती है। उन्होंने कहा कि हम आपसे कोई वोट मांगने नहीं आए हैं, बल्कि आपको जगाने आए हैं कि आप 25 जुलाई को दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाले आंदोलन को अपना समर्थन दें।


टीम अन्ना के एक अन्य सदस्य कुमार विश्वास ने भी कहा कि प्रणब मुखर्जी भी उन 14 मंत्रियों की सूची में शामिल हैं, जो किसी न किसी तौर पर आर्थिक भ्रष्टाचार में शामिल हैं। उन्होंने प्रदेश की समाजवादी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सबको साथ लेकर चलने का दावा करने वाली यह सरकार अब सिर्फ पैसे वाले अमीर वर्ग की सरकार बन गई है और यह बिजली-पानी की सुविधाएं उन्हीं लोगों को उपलब्ध कराने की बात कहती है, जो उसे ज्यादा पैसा दे सकें।

6/1/12

विकास में बिहार फिर अव्वल, गुजरात टॉप-5 में नहीं

नई दिल्ली।। पिछले कई दशकों से गरीबी और पिछड़ेपन का प्रतीक बिहार लगातार दूसरे साल सबसे तेज विकास दर हासिल करने वाला राज्य बन गया है। बिहार की इकॉनमी फाइनैंशल ईयर 2011-12 के दौरान 13.1 % की दर से बढ़ी है। चार साल पहले पहली बार बिहार की विकास दर डबल डिजिट में पहुंची थी और अब सूबे की इकॉनमी उस पंजाब से बड़ी हो गई है, जो कभी पलायन करने वाले बिहारियों के लिए पसंदीदा ठौर बना हुआ था। सांख्यिकीय मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे तेज विकास दर हासिल करने वाले टॉप- 5 राज्यों में बिहार के बाद क्रमश: दिल्ली, पुडुचेरी, छत्तीसगढ़ और गोवा हैं। घरेलू और विदेशी निवेशकों का पसंदीदा राज्य गुजरात 9.1% की विकास दर के साथ टॉप फाइव में जगह नहीं बना पाया। हालांकि, अपेक्षाकृत ज्यादा औद्योगीकृत राज्यों में केवल तमिलनाडु (9.4%) ही गुजरात से आगे रहा है। पंजाब, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश की विकास दर देश के जीडीपी ग्रोथ रेट 6.5% से भी कम रही। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि गुजरात और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों का विकास ज्यादा व्यापक है और इनमें से कोई भी कभी भी नंबर वन बन सकता है। बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की विकास दर का आधार उतना व्यापक नहीं है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि 2004-05 के मूल्य आधार पर तमिलनाडु में 4.28 करोड़ की आर्थिक गतिविधियां हुईं, जबकि बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 1.63 करोड़ का ही रहा है। महाराष्ट्र के बाद अब तमिलनाडु की इकनॉमी भी यूपी से बड़ी हो गई है। आकलन के मुताबिक, 2011-12 में यूपी की अर्थव्यवस्था 4.19 लाख करोड़ की रही। हालांकि, महाराष्ट्र के आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन अनुमान है कि वह अभी भी देश की सबसे बड़ी इकनॉमी वाला राज्य है। 2010-11 में यहां की अर्थव्यवस्था 7 लाख करोड़ की थी। हाल के सालों में निवेशकों ने महाराष्ट्र से मुंह फेरते हुए गुजरात और तमिलनाडु को अहमियत दी है, जसकी वजह से राज्य की विकास दर घटी है। बिहार की तेज विकास दर की वजह वहां कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरने के चलते सड़क निर्माण और दूसरे कंस्ट्रक्शन कामों में तेजी है। इसके अलावा कई अनाजों की ज्यादा पैदावार से ग्रामीण इलाकों में भी मांग बढ़ी है। नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस के प्रफेसर एन. आर. भानुमूर्ति का कहना है कि बिहार को दो चीजों की वजह से मदद मिल रही है। बिहार की ग्रोथ का आकलन लो बेस पर हो रहा है और गवर्नंस के मसले में सुधार की वजह से निवेशक आकर्षित हो रहे हैं।

 

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