8/9/12

अब दो घंटे में पहुंचिए दिल्ली से आगरा

दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गुरुवार को ग्रेटर नोएडा को आगरा से जोड़ने वाले यमुना एक्सप्रेस वे का उद्घाटन किया. गुरुवार शाम से लोग 12 करीब हजार करोड़ रुपये की लागत से बने इस एक्सप्रेस वे पर वाहन दौड़ा सकेंगे. एक्सप्रेस वे 15 पर अगस्त तक टोल नहीं लगेगा. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बटन दबाकर यमुना एक्सप्रेस वे का उद्घाटन करने के बाद अपने सम्बोधन में कहा, "किसी भी राज्य में जब तक सड़कें अच्छी नहीं रहेंगी वहां विकास अधूरा रहेगा अगर. सड़कें अच्छी होंगी तो विकास बड़े पैमाने पर होगा. " दिल्ली और आगरा के बीच की दूरी अब दो घंटे में तय होगी. दिल्ली - आगरा के 6 बीच महीने के इंतजार के बाद यमुना एक्सप्रेस वे आज खुल गया. करीब 165 किलोमीटर लंबे इस हाइवे से दोनों शहरों के बीच यात्रा का वक्त करीब 1.5 करीब घंटे कम हो जाएगा. हाइवे में टोल के लिए कार को दो करीब रुपये किलोमीटर चुकाने होंगे, जिससे कार से आगरा जाने का 320 टोल रुपये होगा. वहीं ट्रक के 500 लिए रुपये टोल लगेगा, जबकि टू व्हीलर के लिए 150 टोल रुपये होगा. 165 किलोमीटर लंबे देश के सबसे लंबे एक्सप्रेस वे पर आज से लोग फर्राटा भर सकेंगे. पूरी तरह से कंट्रोल एक्सेस और एलिवेटेड तकनीक पर बने इस एक्सप्रेस वे पर छोटी गाड़ियों के लिए अधिकतम 100 स्पीड किलोमीटर प्रति घंटा तय की गई है. जबकि भारी 60 वाहन किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल सकेंगे. यमुना एक्सप्रेस वे को बनाने 12,000 में करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए हैं.


7/28/12

फिल्म ' क्या कूल हैं हम

फिल्मों की मार्केटिंग और प्रमोशन में एकता कपूर भले ही हमेशा नए-नए हथकंडों का इस्तेमाल करती हैं। बावजूद इसके उनकी फिल्मों की कहानी और पटकथा में वजन बरकरार रहता है।
लेकिन फिल्म निर्माता एकता कपूर की इस सप्ताह रिलीज हुई फिल्म 'क्या सुपर कूल हैं हम' आपको जरूर निराश करेगी।
हालांकि एकता कपूर ने 'क्या सुपर कूल हैं हम' के प्रमोशन पर भी खूब पैसे खर्च किए है, लेकिन फिर भी फिल्म की बॉक्स ऑफिस ओपनिंग ठंडी रही है। क्योंकि पटकथा के साथ-साथ निर्देशक सचिन यार्डी का निर्देशन भी औसत ही है।
जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि एकता कपूर की इस फिल्म में काफी बोल्ड औऱ डबल मीनिंग डायलॉग हैं, लेकिन फिल्म ' क्या कूल हैं हम ' के मुकाबले इसकी कहानी बेमजा है। हम कह सकते है कि यह फिल्म क्या कूल हैं हम के आसपास भी नहीं ठहरती है।
हां, अगर आप डबल मीनिंग डायलॉग और बोल्ड सीन्स के शौंकीन हैं तो आपको यह फिल्म जरूर भा सकती है, लेकिन यदि आप कम्पलीट पैकेज यानी रोमांस, मारधाड़ और कॉमेडी देखना चाहते हैं तो निराशा ही आपके हाथ लगेगी।
इस फिल्म में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे आप नई-नई गर्लफ्रेन्ड के साथ भी देखना पसंद नहीं करेंगे। वहीं फैमिली के साथ तो इसे देखा ही नहीं जा सकता है। क्या सुपर कूल हैं हम की कहानी पुरानी कहानी का ही विस्तार कहें तो गलत नहीं होगा।
आदि ( तुषार कपूर ) और सिड ( रितेश देशमुख ) नामक दो दोस्त अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई आते है, लेकिन संघर्ष के अलावा उन्हें अभी तक कुछ नहीं मिल सका है।
ग्लैमर इंडस्ट्री में कैरियर बनाने का इच्छुक आदि को टेलीशॉपिंग ऐड के अलावा अभी तक कोई प्रोजेक्ट नहीं मिल सका है, जिससे वह काफी निराश है जबकि उसका दोस्त सिड नामी डीजे बनकर दौलत कमाना चाहता है, लेकिन प्राइवेट पार्टियों में छोटे-छोटे परफॉर्मेंस के अलावा करने को कुछ नहीं मिल पाया है।
यही नही, ज्यादा कमाई नहीं होने से कभी- कभी दोनो को महीने के कुछ दिन कड़की में गुजारने पड़ते है, लेकिन एक पालतू डॉगी सकरू, जो कि एक स्पर्म डोनर है से उनकी गाड़ी पटरी पर आ जाती है।
स्पर्म डॉनर डॉगी सकरू की शहर की हाई सोसायटी में बड़ी डिमांड भी रहती है। लेकिन इस बीच एक दिन आदि की मुलाकात एक मशहूर टेरो कार्ड रीडर से होती है और उसे पता चलता है कि एस नाम से शुरू होने वाली लड़की उसकी सूखी जिंदगी में बहार ला सकती है।
फिर क्या अगले ही दिन आदि एस नाम की लड़की की तलाश में जुट जाता है और जल्द ही उसकी मुलाकात सिमरन ( नेहा शर्मा ) से होती है और टैरे रीडर के मुताबिक उसी दिन उसे डायरेक्टर रोहित शेट्टी की फिल्म चिंघम में लीड रोल मिल जाता है।
आदि को लगता है सिमरन उसके लिए लकी है और वह अगली मुलाकात में ही सिमरन को प्रपोज कर देता है। लेकिन सिमरन उसे बताती है कि उसे लड़कों से ज्यादा लड़कियों में दिलचस्पी है यानी वह लेज़बियन है। पूरी फिल्म इसी ऊहापोह के बीच खत्म हो जाती है।
इस फिल्म में प्रमुख कलाकार है तुषार कपूर, रितेश देशमुख, नेहा शर्मा, सारा जेन डियास और अनुपम खेर जबकि फिल्म का संगीत दिया है एहसान, लॉय और सचिन - जिगर ने।

7/6/12

फिल्म रिव्यूः बोल बच्चन

फर्ज कीजिए कि आप अपने पसंदीदा रेस्तरां में गए और वहां अपनी फेवरेट डिश ऑर्डर की। वेटर बड़े अदब से वह डिश लाया, जिसे चखते ही आपको शेफ पर गुस्सा आया। आप चिल्लाए, यार ये आज तुमने क्या बनाया है? इस डिश में वह पहले वाला टेस्ट क्यों नहीं है? शेफ कहे कि सर, मैंने इसमें नया प्रयोग किया है, जो आपके गले न उतरे और आप असंतुष्ट हो झुंझला कर किसी दूसरे रेस्तरां में चले जाएं।
रोहित शेट्टी की फिल्म ‘बोल बच्चन’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। एंटरटेनमेंट के तमगों से नवाजी गई उनकी पिछली तमाम फिल्मों के बाद ‘बोल बच्चन’ देखने पर यही अहसास होता है कि रोहित अब की बार यह तुमने क्या किया है। इस कॉमेडी फिल्म से कॉमेडी ऐसे गायब है, जैसे बटर स्लाइस से मक्खन। अब कम बटर लगी रूखी ब्रेड से कितनी देर तक गुजारा चलता।
वह तो शुक्र है कि बीच-बीच में असरानी, अर्चना पूरण सिंह और कृष्णा ने संभाले रखा, वर्ना अजय देवगन का पृथ्वी सिंह जैसा किरदार इतना लाउड है कि उसके आगे कोई दो मिनट भी नहीं टिक सकता। यही वजह है कि अभिषेक बच्चन डबल एक्ट में भी बेचारे से नजर आते हैं।
‘बोल बच्चान’ 1979 में आई ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘गोलमाल’ से प्रेरित है। हालांकि रोहित इसे ‘गोलमाल ’का रीमेक कह रहे हैं। यह फिल्म रीमेक इसलिए भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि उन्होंने इसकी कहानी और पात्रों के कान अपनी मर्जी से इतने ज्यादा उमेठ दिए हैं कि ‘गोलमाल’ की वास्तविकता खत्म हो गई है।
फिल्म की कहानी अब्बास अली (अभिषेक बच्चन) और उसकी बहन सानिया (असिन) के रणकपुर गांव जाने से शुरु होती है, जहां उनके परिचित शास्त्री (असरानी) का बेटा रवि (कृष्णा) रहता है।
अब्बास को काम की तलाश है। एक दिन वह गांव के बरसों पुराने मंदिर का ताला तोड़ देता है। इस मुसीबत से बचने के लिए रवि अब्बास को अभिषेक बच्चन बना देता है और अभिषेक को पृथ्वी (अजय देवगन) के यहां नौकरी मिल जाती है। इसके बाद शुरू होता है एक के बाद एक झूठ बोलने का सिलसिला, जिसमें अभिषेक के साथ-साथ सानिया, रवि और शास्त्री भी शामिल हो जाते हैं।
अभिषेक की मां बन कर इस टीम में जोहरा (अर्चना पूरण सिंह) भी शामिल हो जाती है, जो पेशे से एक तवायफ है। सब गोलमाल ढंग से चल रहा होता है कि एक दिन पृथ्वी की बहन राधिका (प्राची देसाई) शहर से लौट आती है। इसी बीच पृथ्वी अभिषेक को मस्जिद में नमाज पढ़ते हुए देख लेता है। इस झूठ को छिपाने के लिए रवि फिर से अभिषेक को अब्बास बना देता है।
यानी अभिषेक का नकली भाई अब्बास बना देता है। पृथ्वी अब्बास को राधिका के डांस टीचर की नौकरी दे देता है। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगती हैं और उनमें प्यार हो जाता है। यही प्यार उनका भांडा भी फोड़ देता है। इस अधपकी सी कहानी को रोहित शेट्टी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में पेश किया है। उनकी इस फिल्म में भी उन्हीं के स्टाइल का एक्शन है।
यानी जब हीरो गुंडों की पिटाई करता है तो खन्न से आवाज होती है, मानो गुंडे की कनपटी से रेजगारी गिर रही हो। एक हाथ से हीरो का दजर्नों गुंडों को पीटना, गाड़ियों की भाग-दौड़ और उठा-पटक सहित सब कुछ है।
रोहित की पिछली तमाम फिल्मों में ढेर सारे किरदार देखे गए हैं। उनके रोल बेशक छोटे होते हैं, लेकिन इससे कॉमेडी की वेरायटी बनी रहती है, जिसका अभाव ‘बोल बच्चन’ में दिखाई देता है। कृष्णा और अर्चना पूरण सिंह के वन लाइनर जोक्स का उन्होंने अच्छा इस्तेमाल किया है। कहीं-कहीं कॉमेडियन वीआईपी भी नजर आ जाते हैं तो लगता है कि आप कॉमेडी सर्कस का कोई एपिसोड देख रहे हैं।
फिल्म में अगर कहीं कोई रिलीफ मिलती है तो इन्हीं कलाकारों से मिलती है। लंबे समय से असफलता का मुंह देख रहे अभिषेक बच्चान ने कोशिश काफी की है कि वह फिल्म ‘दोस्ताना’ जैसा ह्यूमर क्रिएट कर सकें। इसके लिए उन्होंने पिछले कई पुराने आइटम नंबरों पर डांस भी किया है, लेकिन अजय देवगन के लाउड कैरेक्टर के आगे वह दब से जाते हैं।
उधर अजय देवगन को एक सिरफिरा इंसान दिखाया गया है, जो बात-बात में मुगदर उठाता और घूंसे जड़ता है, लेकिन वो इस रोल के कलफ से बाहर ही नहीं निकल पाए। यही वजह है कि इस बार वह एंटरटेन करते नहीं दिखते।
सनद रहे कि ऐसा ही रोल वह ‘गोलमाल 3’ में भी कर चुके हैं। असिन और प्राची के किरदार ऐसे हैं, जिन्हें कोई अन्य तारिका भी कर सकती थी। फिल्म का संगीत बांधे रखता है। विजुअली फिल्म काफी अच्छी है। कुल मिला कर कह सकते हैं कि फिल्म में रोहित का जादू नहीं है।
कलाकार: अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, असिन, प्राची देसाई, कृष्णा, अर्चना पूरण सिंह और असरानी
निर्देशक: रोहित शेट्टी
निर्माता: अजय देवगन/श्री अष्टविनायक
संगीत: हिमेश रेशमिया, अजय-अतुल
कहानी: फरहाद यूनुस सेजवाल और साजिद
संवाद: फरहाद और साजिद

6/20/12

भ्रष्ट मंत्रियों की लिस्ट में प्रणब का भी नाम : किरण बेदी

कानपुर: प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद पर चुनाव लड़ने पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए टीम अन्ना की प्रमुख सदस्य किरण बेदी ने कहा कि हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि हमने जिन 14 मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की बात कही है, उन सभी मंत्रियों की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए। इन 14 मंत्रियों की सूची में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी शामिल हैं।


ब्रिक्स देशों ने कर्ज संकट के दलदल में फंसे यूरोपीय देशों को उबारने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को 75 अरब डॉलर का बेलआउट फंड देने की जो घोषणा की है, उसमें भारत द्वारा 10 अरब डॉलर का योगदान किए जाने को बेदी ने गलत बताते हुए कहा कि जब हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा रही है, तो हमें दूसरे देशो को संकट से निपटने के लिए कर्ज सहायता देना ठीक नहीं है।


बेदी 'इंडिया अंगेस्ट करप्शन' के तहत निकाली जा रही अन्ना संदेश यात्रा के अवसर पर आयोजित एक सभा को संबोधित करने आई थीं। कार्यक्रम के बाद पत्रकारों के प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर टीम अन्ना के रुख के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि टीम अन्ना ने गहन जांच-पड़ताल के बाद जिन 14 मंत्रियों की सूची बनाई है और जिनके भ्रष्टाचार में शामिल होने की बात कही है, उनमें प्रणब मुखर्जी भी शामिल हैं।


इससे पहले बेदी ने अपने भाषण में कहा कि हमारा देश बुजदिलों और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने वाला बनता जा रहा है और हम देशवासी दिन पर दिन गरीब होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा देश और हम गरीबी और परेशानी में इसलिए हैं, क्योंकि हमारे नेता और नौकरशाह बेईमान हैं और देशवासी तब तक गरीबी का दंश झेलते रहेंगे, जब तक आंखों पर पट्टी बांधकर बिना जांचे-परखे अपने उम्मीदवारों को वोट देते रहेंगे और उन्हें संसद में चुनकर भेजते रहेंगे।


बेदी ने कहा कि एक पुलिस का छोटा सा अधिकारी भ्रष्टाचार करता है, तो फौरन उसके खिलाफ जांच बैठा दी जाती है, लेकिन जब हमारे देश के नेता भ्रष्टाचार करते हैं और हम जांच की मांग करते हैं, तो उनके खिलाफ जांच तक नहीं होती है। उन्होंने कहा कि हम आपसे कोई वोट मांगने नहीं आए हैं, बल्कि आपको जगाने आए हैं कि आप 25 जुलाई को दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाले आंदोलन को अपना समर्थन दें।


टीम अन्ना के एक अन्य सदस्य कुमार विश्वास ने भी कहा कि प्रणब मुखर्जी भी उन 14 मंत्रियों की सूची में शामिल हैं, जो किसी न किसी तौर पर आर्थिक भ्रष्टाचार में शामिल हैं। उन्होंने प्रदेश की समाजवादी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सबको साथ लेकर चलने का दावा करने वाली यह सरकार अब सिर्फ पैसे वाले अमीर वर्ग की सरकार बन गई है और यह बिजली-पानी की सुविधाएं उन्हीं लोगों को उपलब्ध कराने की बात कहती है, जो उसे ज्यादा पैसा दे सकें।

6/1/12

विकास में बिहार फिर अव्वल, गुजरात टॉप-5 में नहीं

नई दिल्ली।। पिछले कई दशकों से गरीबी और पिछड़ेपन का प्रतीक बिहार लगातार दूसरे साल सबसे तेज विकास दर हासिल करने वाला राज्य बन गया है। बिहार की इकॉनमी फाइनैंशल ईयर 2011-12 के दौरान 13.1 % की दर से बढ़ी है। चार साल पहले पहली बार बिहार की विकास दर डबल डिजिट में पहुंची थी और अब सूबे की इकॉनमी उस पंजाब से बड़ी हो गई है, जो कभी पलायन करने वाले बिहारियों के लिए पसंदीदा ठौर बना हुआ था। सांख्यिकीय मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे तेज विकास दर हासिल करने वाले टॉप- 5 राज्यों में बिहार के बाद क्रमश: दिल्ली, पुडुचेरी, छत्तीसगढ़ और गोवा हैं। घरेलू और विदेशी निवेशकों का पसंदीदा राज्य गुजरात 9.1% की विकास दर के साथ टॉप फाइव में जगह नहीं बना पाया। हालांकि, अपेक्षाकृत ज्यादा औद्योगीकृत राज्यों में केवल तमिलनाडु (9.4%) ही गुजरात से आगे रहा है। पंजाब, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश की विकास दर देश के जीडीपी ग्रोथ रेट 6.5% से भी कम रही। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि गुजरात और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों का विकास ज्यादा व्यापक है और इनमें से कोई भी कभी भी नंबर वन बन सकता है। बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की विकास दर का आधार उतना व्यापक नहीं है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि 2004-05 के मूल्य आधार पर तमिलनाडु में 4.28 करोड़ की आर्थिक गतिविधियां हुईं, जबकि बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 1.63 करोड़ का ही रहा है। महाराष्ट्र के बाद अब तमिलनाडु की इकनॉमी भी यूपी से बड़ी हो गई है। आकलन के मुताबिक, 2011-12 में यूपी की अर्थव्यवस्था 4.19 लाख करोड़ की रही। हालांकि, महाराष्ट्र के आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन अनुमान है कि वह अभी भी देश की सबसे बड़ी इकनॉमी वाला राज्य है। 2010-11 में यहां की अर्थव्यवस्था 7 लाख करोड़ की थी। हाल के सालों में निवेशकों ने महाराष्ट्र से मुंह फेरते हुए गुजरात और तमिलनाडु को अहमियत दी है, जसकी वजह से राज्य की विकास दर घटी है। बिहार की तेज विकास दर की वजह वहां कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरने के चलते सड़क निर्माण और दूसरे कंस्ट्रक्शन कामों में तेजी है। इसके अलावा कई अनाजों की ज्यादा पैदावार से ग्रामीण इलाकों में भी मांग बढ़ी है। नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस के प्रफेसर एन. आर. भानुमूर्ति का कहना है कि बिहार को दो चीजों की वजह से मदद मिल रही है। बिहार की ग्रोथ का आकलन लो बेस पर हो रहा है और गवर्नंस के मसले में सुधार की वजह से निवेशक आकर्षित हो रहे हैं।

2/4/12

गूगल भी ट्विटर की राह पर, फिल्टर करेगा सामग्री

इंटरनेट सर्च के दिग्गज खिलाड़ी गूगल ने भी ब्लॉग की सामग्री को सेंसर करने की तैयारी कर ली है। इससे एक सप्ताह पहले माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर ऐसे ही इरादे जता चुकी है। हालांकि ब्लॉगर्स ने ट्विटर के इस कदम का विरोध किया था। गूगल का इरादा किसी देश के स्थानीय नियमों के अनुसार सामग्री को फिल्टर करने का है। दरअसल भारत सहित कई देश चाहते हैं कि इंटरनेट पर मौजूद सामग्री पर नियंत्रण रहे। 

सरकारों के लिहाज से सामग्री को नियंत्रित
गूगल का कहना है कि इसकी 1999 में लांच की गई सेवा ब्लॉगर पर नियम लागू होंगे। जहां कंटेंट नियंत्रित होगा वे देश हैं-भारत, ब्राजील, होंडूरास और जर्मनी। समझा जाता है गूगल नई योजना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहता है।
अब गूगल अलग-अलग देशों में स्थानीय सरकारों के लिहाज से सामग्री को नियंत्रित कर सकेगा। इसके लिए ब्लॉग को पूरी दुनिया में ब्लॉक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

कानूनों का सम्मान और पालन भी
कंपनी का कहना है, मिसाल के तौर पर अगर कोई ब्लॉग आस्ट्रेलिया के कानून के लिहाज से सही नहीं है तो गूगल उसे सिर्फ आस्ट्रेलिया में ब्लॉक करेगा बाकी देशों में वह पढ़ा और देखा जा सकेगा। इससे अभिव्यक्ति की आजादी भी रहेगी और साथ ही जिम्मेदारी का निर्वाह भी हो सकेगा। साथ ही कंपनी स्थानीय कानूनों का सम्मान और पालन भी कर सकेगी। 

कंटेंट हटाने की तकनीक उसके पास
गूगल का कहना है कि आने वाले सप्ताहों में ब्लॉगर प्लेटफॉर्म के लिए किसी खास देश वाली यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यूआरएल) स्कीम को लागू किया जाएगा। यहां से यह देशों के कोड पर रिडायरेक्ट हो जाएगी। किसी खास देश के डोमेन एड्रेस के इस्तेमाल से कंटेंट को उस देश के लिहाज से हटाना आसान हो जाएगा। कंटेंट सिर्फ संबंधित पेज से हटाया जाएगा। इससे पहले ट्विटर कह चुका है कि किसी एक देश के लिए कंटेंट हटाने की तकनीक उसके पास है। 

1/3/12

बसपा से बर्खास्त बाबू सिंह कुशवाहा बीजेपी में शामिल

उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती द्वारा हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोप में अपनी पार्टी और मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए गए बाबू सिंह कुशवाहा और बादशाह सिंह को औपचारिक रूप से बीजेपी में शामिल कर लिया गया.
बीजेपी महासचिव विनय कटियार ने कुशवाहा और सिंह को पार्टी में शामिल करने की घोषणा करने साथ संकेत दिया कि राज्य के विधानसभा चुनाव में इन दोनों को पार्टी उम्मीदवार बनाया जा सकता है.

कटियार ने हालांकि संवाददाताओं को इन दोनों नेताओं से बात करने या प्रश्नों का उत्तर देने की अनुमति नहीं दी.

सवालों के जवाब में कटियार ने कहा कि कुशवाहा और बादशाह दोनों पर कोई दोष या मुकद्दमा नहीं है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार के जिस भी मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं उन सब भ्रष्टाचार की जिम्मेदार स्वयं मुख्यमंत्री मायावती हैं.

यह कहे जाने पर बसपा से भ्रष्टाचार के आरोप में निकाले गए लोग बीजेपी में आकर ईमानदार कैसे हो जाएंगे, उन्होंने कहा, ‘भ्रष्टाचार की जननी मायावती है. विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद उन्होंने 18 से बीस मंत्री निकाल दिए जबकि इससे पहले तक वह उन्हीं के माध्यम से मलाई खा रही थीं.’

कुशवाहा मायावती के सबसे करीबी लोगों में माने जाते थे. लेकिन राज्य के दो मुख्य चिकित्सक अधिकारी बीपी सिंह और वीके आर्य की हत्या के बाद उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया गया.

 

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